Madhu varma

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लेखनी कविता - यौवन का पागलपन -माखन लाल चतुर्वेदी

यौवन का पागलपन -माखन लाल चतुर्वेदी 


हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

 सपना है, जादू है, छल है ऐसा
 पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
 मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।

 यह गुदगुदी, यही बीमारी,
 मन हुलसावे, छीजे काया।

 हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

 वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
 वह आया सपने में, मन में, उठकर,
 वह आया साँसों में से रुक-रुककर।

 हो न पुरानी, नई उठे फिर
 कैसी कठिन मोहनी माया!

हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

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